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Monday, 29 June 2015

भीख माँगते शर्म नहीं आती (Bheekh Mangte Sharm Nahin Aati) - शैल चतुर्वेदी (Shail Chaturvedi)

लोकल ट्रेन से उतरते ही
हमने सिगरेट जलाने के लिए
एक साहब से माचिस माँगी,
तभी किसी भिखारी ने
हमारी तरफ हाथ बढ़ाया,
हमने कहा-
"भीख माँगते शर्म नहीं आती?"

ओके, वो बोला-
"माचिस माँगते आपको आयी थी क्‍या?"
बाबूजी! माँगना देश का करेक्‍टर है,
जो जितनी सफ़ाई से माँगे
उतना ही बड़ा एक्‍टर है,
ये भिखारियों का देश है
लीजिए! भिखारियों की लिस्‍ट पेश है,

धंधा माँगने वाला भिखारी
चंदा माँगने वाला
दाद माँगने वाला
औलाद माँगने वाला
दहेज माँगने वाला
नोट माँगने वाला
और तो और
वोट माँगने वाला
हमने काम माँगा
तो लोग कहते हैं चोर है,
भीख माँगी तो कहते हैं,
कामचोर है,

उनमें कुछ नहीं कहते,
जो एक वोट के लिए ,
दर-दर नाक रगड़ते हैं,
घिस जाने पर रबर की खरीद लाते हैं,
और उपदेशों की पोथियाँ खोलकर,
महंत बन जाते हैं।
लोग तो एक बिल्‍ले से परेशान हैं,
यहाँ सैकड़ों बिल्‍ले
खरगोश की खाल में देश के हर कोने में विराजमान हैं।

हम भिखारी ही सही ,
मगर राजनीति समझते हैं ,
रही अख़बार पढ़ने की बात
तो अच्‍छे-अच्‍छे लोग ,
माँग कर पढ़ते हैं,
समाचार तो समाचार ,
लोग बाग पड़ोसी से ,
अचार तक माँग लाते हैं,
रहा विचार!
तो वह बेचारा ,
महँगाई के मरघट में,
मुद्दे की तरह दफ़न हो गया है।

समाजवाद का झंडा ,
हमारे लिए कफ़न हो गया है,
कूड़ा खा रहे हैं और बदबू पी रहे हैं ,
उनका फोटो खींचकर
फिल्‍म वाले लाखों कमाते हैं
झोपड़ी की बात करते हैं
मगर जुहू में बँगला बनवाते हैं।
हमने कहा "फिल्‍म वालों से
तुम्‍हारा क्‍या झगड़ा है ?"
वो बोला-
"आपके सामने भिखारी नहीं
भूतपूर्व प्रोड्यूसर खड़ा है
बाप का बीस लाख फूँक कर
हाथ में कटोरा पकड़ा!"
हमने पाँच रुपए उसके
हाथ में रखते हुए कहा-
"हम भी फिल्‍मों में ट्राई कर रहे हैं !"
वह बोला, "आपकी रक्षा करें दुर्गा माई
आपके लिए दुआ करूँगा
लग गई तो ठीक
वरना आपके पाँच में अपने पाँच मिला कर
दस आपके हाथ पर धर दूँगा !"

चल गयी (Chal Gayi) - शैल चतुर्वेदी (Shail Chaturvedi)

वैसे तो एक शरीफ इंसान हूँ
आप ही की तरह श्रीमान हूँ
मगर अपनी आंख से
बहुत परेशान हूँ
अपने आप चलती है
लोग समझते हैं -- चलाई गई है
जान-बूझ कर मिलाई गई है।

एक बार बचपन में
शायद सन पचपन में
क्लास में
एक लड़की बैठी थी पास में
नाम था सुरेखा
उसने हमें देखा
और बांई चल गई
लड़की हाय-हाय
क्लास छोड़ बाहर निकल गई।

थोड़ी देर बाद
हमें है याद
प्रिंसिपल ने बुलाया
लंबा-चौड़ा लेक्चर पिलाया
हमने कहा कि जी भूल हो गई
वो बोल - ऐसा भी होता है भूल में
शर्म नहीं आती
ऐसी गंदी हरकतें करते हो,
स्कूल में?
और इससे पहले कि
हकीकत बयान करते
कि फिर चल गई
प्रिंसिपल को खल गई।
हुआ यह परिणाम
कट गया नाम
बमुश्किल तमाम
मिला एक काम।

इंटरव्यूह में, खड़े थे क्यू में
एक लड़की थी सामने अड़ी
अचानक मुड़ी
नजर उसकी हम पर पड़ी
और आंख चल गई
लड़की उछल गई
दूसरे उम्मीदवार चौंके
उस लडकी की साईड लेकर
हम पर भौंके
फिर क्या था
मार-मार जूते-चप्पल
फोड़ दिया बक्कल
सिर पर पांव रखकर भागे
लोग-बाग पीछे, हम आगे
घबराहट में घुस गये एक घर में
भयंकर पीड़ा थी सिर में
बुरी तरह हांफ रहे थे
मारे डर के कांप रहे थे
तभी पूछा उस गृहणी ने --
कौन ?
हम खड़े रहे मौन
वो बोली
बताते हो या किसी को बुलाऊँ ?
और उससे पहले
कि जबान हिलाऊँ
चल गई
वह मारे गुस्से के
जल गई
साक्षात दुर्गा-सी दीखी
बुरी तरह चीखी
बात की बात में जुड़ गये अड़ोसी-पड़ोसी
मौसा-मौसी
भतीजे-मामा
मच गया हंगामा
चड्डी बना दिया हमारा पजामा
बनियान बन गया कुर्ता
मार-मार बना दिया भुरता
हम चीखते रहे
और पीटने वाले
हमें पीटते रहे
भगवान जाने कब तक
निकालते रहे रोष
और जब हमें आया होश
तो देखा अस्पताल में पड़े थे
डाक्टर और नर्स घेरे खड़े थे
हमने अपनी एक आंख खोली
तो एक नर्स बोली
दर्द कहां है?
हम कहां कहां बताते
और इससे पहले कि कुछ कह पाते
चल गई
नर्स कुछ नहीं बोली
बाइ गॉड ! (चल गई)
मगर डाक्टर को खल गई
बोला --
इतने सीरियस हो
फिर भी ऐसी हरकत कर लेते हो
इस हाल में शर्म नहीं आती
मोहब्बत करते हुए
अस्पताल में?
उन सबके जाते ही आया वार्ड-बॉय
देने लगा अपनी राय
भाग जाएं चुपचाप
नहीं जानते आप
बढ़ गई है बात
डाक्टर को गड़ गई है
केस आपका बिगड़वा देगा
न हुआ तो मरा बताकर
जिंदा ही गड़वा देगा।
तब अंधेरे में आंखें मूंदकर
खिड़की के कूदकर भाग आए
जान बची तो लाखों पाये।

एक दिन सकारे
बाप जी हमारे
बोले हमसे --
अब क्या कहें तुमसे ?
कुछ नहीं कर सकते
तो शादी कर लो
लड़की देख लो।
मैंने देख ली है
जरा हैल्थ की कच्ची है
बच्ची है, फिर भी अच्छी है
जैसी भी, आखिर लड़की है
बड़े घर की है, फिर बेटा
यहां भी तो कड़की है।
हमने कहा --
जी अभी क्या जल्दी है?
वे बोले --
गधे हो
ढाई मन के हो गये
मगर बाप के सीने पर लदे हो
वह घर फंस गया तो संभल जाओगे।

तब एक दिन भगवान से मिल के
धड़कता दिल ले
पहुंच गए रुड़की, देखने लड़की
शायद हमारी होने वाली सास
बैठी थी हमारे पास
बोली --
यात्रा में तकलीफ तो नहीं हुई
और आंख मुई चल गई
वे समझी कि मचल गई
बोली --
लड़की तो अंदर है
मैं लड़की की मां हूँ
लड़की को बुलाऊँ
और इससे पहले कि मैं जुबान हिलाऊँ
आंख चल गई दुबारा
उन्होंने किसी का नाम ले पुकारा
झटके से खड़ी हो गईं
हम जैसे गए थे लौट आए
घर पहुंचे मुंह लटकाए
पिता जी बोले --
अब क्या फायदा
मुंह लटकाने से
आग लगे ऐसी जवानी में
डूब मरो चुल्लू भर पानी में
नहीं डूब सकते तो आंखें फोड़ लो
नहीं फोड़ सकते हमसे नाता ही तोड़ लो
जब भी कहीं जाते हो
पिटकर ही आते हो
भगवान जाने कैसे चलाते हो?

अब आप ही बताइये
क्या करूं?
कहां जाऊं?
कहां तक गुन गांऊं अपनी इस आंख के
कमबख्त जूते खिलवाएगी
लाख-दो-लाख के।
अब आप ही संभालिये
मेरा मतलब है कि कोई रास्ता निकालिये
जवान हो या वृद्धा पूरी हो या अद्धा
केवल एक लड़की
जिसकी एक आंख चलती हो
पता लगाइये
और मिल जाये तो
हमारे आदरणीय 'काका' जी को बताइये।

व्यंग्य (Vyangya) - शैल चतुर्वेदी (Shail Chaturvedi)

हमनें एक बेरोज़गार मित्र को पकड़ा
और कहा, "एक नया व्यंग्य लिखा है, सुनोगे?"
तो बोला, "पहले खाना खिलाओ।"
खाना खिलाया तो बोला, "पान खिलाओ।"
पान खिलाया तो बोला, "खाना बहुत बढ़िया था
उसका मज़ा मिट्टी में मत मिलाओ।
अपन ख़ुद ही देश की छाती पर जीते-जागते व्यंग्य हैं
हमें व्यंग्य मत सुनाओ
जो जन-सेवा के नाम पर ऐश करता रहा
और हमें बेरोज़गारी का रोजगार देकर
कुर्सी को कैश करता रहा।

व्यंग्य उस अफ़सर को सुनाओ
जो हिन्दी के प्रचार की डफली बजाता रहा
और अपनी औलाद को अंग्रेज़ी का पाठ पढ़ाता रहा।
व्यंग्य उस सिपाही को सुनाओ
जो भ्रष्टाचार को अपना अधिकार मानता रहा
और झूठी गवाही को पुलिस का संस्कार मानता रहा।
व्यंग्य उस डॉक्टर को सुनाओ
जो पचास रूपये फ़ीस के लेकर
मलेरिया को टी०बी० बतलाता रहा
और नर्स को अपनी बीबी बतलाता रहा।

व्यंग्य उस फ़िल्मकार को सुनाओ
जो फ़िल्म में से इल्म घटाता रहा
और संस्कृति के कपड़े उतार कर सेंसर को पटाता रहा।
व्यंग्य उस सास को सुनाओ
जिसने बेटी जैसी बहू को ज्वाला का उपहार दिया
और व्यंग्य उस वासना के कीड़े को सुनाओ
जिसने अपनी भूख मिटाने के लिए
नारी को बाज़ार दिया।
व्यंग्य उस श्रोता को सुनाओ
जो गीत की हर पंक्ति पर बोर-बोर करता रहा
और बकवास को बढ़ावा देने के लिए
वंस मोर करता रहा।

व्यंग्य उस व्यंग्यकार को सुनाओ
जो अर्थ को अनर्थ में बदलने के लिए
वज़नदार लिफ़ाफ़े की मांग करता रहा
और अपना उल्लू सीधा करने के लिए
व्यंग्य को विकलांग करता रहा।

और जो व्यंग्य स्वयं ही अन्धा, लूला और लंगड़ा हो
तीर नहीं बन सकता
आज का व्यंग्यकार भले ही "शैल चतुर्वेदी" हो जाए
'कबीर' नहीं बन सकता।