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Friday, 5 June 2015

सूरज को नही डूबने दूंगा (Suraj Ko Nahin Doobne Doonga) - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (Sarveshwardayal Saxena)

अब मै सूरज को नही डूबने दूंगा।
देखो मैने कंधे चौड़े कर लिये हैं
मुट्ठियाँ मजबूत कर ली हैं
और ढलान पर एड़ियाँ जमाकर
खड़ा होना मैने सीख लिया है।

घबराओ मत
मै क्षितिज पर जा रहा हूँ।
सूरज ठीक जब पहाडी से लुढ़कने लगेगा
मै कंधे अड़ा दूंगा
देखना वह वहीं ठहरा होगा।

अब मै सूरज को नही डूबने दूंगा।
मैने सुना है उसके रथ मे तुम हो
तुम्हें मै उतार लाना चाहता हूं
तुम जो स्वाधीनता की प्रतिमा हो
तुम जो साहस की मूर्ति हो
तुम जो धरती का सुख हो
तुम जो कालातीत प्यार हो
तुम जो मेरी धमनी का प्रवाह हो
तुम जो मेरी चेतना का विस्तार हो
तुम्हें मै उस रथ से उतार लाना चाहता हूं।

रथ के घोड़े
आग उगलते रहें
अब पहिये टस से मस नही होंगे
मैने अपने कंधे चौड़े कर लिये है।

कौन रोकेगा तुम्हें
मैने धरती बड़ी कर ली है
अन्न की सुनहरी बालियों से
मै तुम्हें सजाऊँगा
मैने सीना खोल लिया है
प्यार के गीतो मे मै तुम्हे गाऊंगा
मैने दृष्टि बड़ी कर ली है
हर आँखों में तुम्हें सपनों सा फहराऊंगा।

सूरज जायेगा भी तो कहाँ
उसे यहीं रहना होगा
यहीं हमारी सांसों मे
हमारी रगों मे
हमारे संकल्पों मे हमारे रतजगों मे
तुम उदास मत होओ
अब मै किसी भी सूरज को
नही डूबने दूंगा।

जंगल की याद मुझे मत दिलाओ (Jungle Ki Yaad Mujhe Mat Dilao) - सर्वेश्वरदयाल सक्सेना (Sarveshwardayal Saxena)

कुछ धुआँ
कुछ लपटें
कुछ कोयले
कुछ राख छोड़ता
चूल्हे में लकड़ी की तरह मैं जल रहा हूँ,
मुझे जंगल की याद मत दिलाओ!

हरे —भरे जंगल की
जिसमें मैं सम्पूर्ण खड़ा था
चिड़ियाँ मुझ पर बैठ चहचहाती थीं
धामिन मुझ से लिपटी रहती थी
और गुलदार उछलकर मुझ पर बैठ जाता था.

जँगल की याद
अब उन कुल्हाड़ियों की याद रह गयी है
जो मुझ पर चली थीं
उन आरों की जिन्होंने
मेरे टुकड़े—टुकड़े किये थे
मेरी सम्पूर्णता मुझसे छीन ली थी !

चूल्हे में
लकड़ी की तरह अब मैं जल रहा हूँ
बिना यह जाने कि जो हाँडी चढ़ी है
उसकी खुदबुद झूठी है
या उससे किसी का पेट भरेगा
आत्मा तृप्त होगी,
बिना यह जाने
कि जो चेहरे मेरे सामने हैं
वे मेरी आँच से
तमतमा रहे हैं
या गुस्से से,
वे मुझे उठा कर् चल पड़ेंगे
या मुझ पर पानी डाल सो जायेंगे.
मुझे जंगल की याद मत दिलाओ!
एक—एक चिनगारी
झरती पत्तियाँ हैं
जिनसे अब भी मैं चूम लेना चाहता हूँ
इस धरती को
जिसमें मेरी जड़ें थीं!